सब जानते है कि रूस यूक्रेन युद्ध से युक्रेन मे कितना तबाही हो रहा है। कितने जाने जा रही है। सबको डर भी है कि कहीं ये युद्ध विश्व युद्ध 3 का शकल न लेले। इस मामले मे पुरी दुनिया रूस के राष्ट्रपति पुतिन को कोश भी रहे है। कोइ दरींदा बोल रहा है तो कोइ हिट्लर से तुलना कर रहा है। लेकिन आप जानते है कि कोइ भी युद्ध ऐसे ही एक रात मे सुरू नही हो जाता। ऐसे ही पुतिन चलते चलते युक्रेन के साथ युद्ध सुरू नहि कर दिये । इस युद्ध का भी एक कारण है, एक इतिहास है।
चलिये आज हम इस इतीहास के बारे मे बताते है जो आपकी सोच बदल दे। सोवियत संघ 1991 मे विघटित हुआ जिसमे कहीं न कहीं अमेरिका तथा पस्चिमी देसो का भी हाथ था, क्योंकी उस वक्त सोवियत संघ सबसे ताकतवर देसो मे गिना जाता था जो कि अमेरिका को खटक रहा था। सोवियत संघ विघटन के बाद एक संधी हुआ कि रूस से विघटीत देस NATO मे शामिल नही किए जायेंगे और NATO को विस्तार नही किया जायेगा। लेकिन पस्चिमी देसो ने इस संधी क अवमानना करना सुरु कर दिया और कई देसो को NATO मे शामिल कर दिया जैसे इस्तोनीया, लातविया , लिथुनीया और भी कई देस। जो कि रूस के लिए चिंता का कारण बन गया। रूस के राष्ट्रपति पु्तिन कई बार NATO के विस्तार रोकने कि बात कही लेकिन पस्चिमी देसो ने अनसुना कर दिया और लगातार विस्तार करने लगे।
जब NATO मे युक्रेन को भी शामिल करने कि बात होने लगा तब रुस ने इसका जमकर विरोध किया। लेकिन पस्चिमी देसो ने बिल्कुल नही सुना और रुस को अपने सुरक्छा को लेकर चिंता होने लगा। रूस के राष्ट्रपति पुतिन बिच – बिच मे युक्रेन और पस्चिमी देसो को इस मामले मे धमकाने भी लगे। लेकिन उन्होने गम्भिरता से नही लिया बल्कि इसके उलट युक्रेन को उकसाने का काम किया और बड़े बड़े वादे किए। अमेरिका और NATO देस युक्रेन को रूस से सुरक्छा का भरोसा दिया। युक्रेन जानता था कि वो रूस जैसे सक्तिसाली देस का अकेला सामना नही कर पायेगा लेकिन जब अमेरिका जैसे देसो ने बड़े बड़े वादे किए तो वो उन देसो के बातो मे आ गया। और जैसे ही रूस ने युक्रेन पर हमला किया तब अपने फितरत के अनुसार अमेरिका और NATO देस अपने वादो से पलट गए। अमेरिका तक कह दिया कि अपना सेना युद्ध मे नही उतारेगा, वो अलग बात है कि सभी पस्चिमी देस मदद के नाम पर पैसे और हथियार युक्रेन को दे रहे है। रूस पर पाबंधिया भी लगा रहे है लेकिन सब जानते है कि युद्ध सैनिको के दम पर लड़ा जाता है और कोइ भी देस अपना एक भी सैनिक युक्रेन के लिये मरवाना नही चाहता। इस करण से युक्रेन युद्ध मे अकेला फस गया।
अगर सरलता मे समझे तो अगर दो व्यक्ति के बिच विवाद हो जाए। उनमे से एक व्यक्ति के दोस्त उस व्यक्ति को उक्साने का काम करे। उसे कहे कि तुम लड़ो हम तुम्हारे साथ है , तुम्हे कुछ नही होने देंगे। लेकिन जब लाड़ाई हो जाए तब वही दोस्त उस लड़ाई मे शामिल होने के बजाय मदद के नाम पर दुर से लड़ने के लिए लाठी देने लगे। ऐसा ही कुछ युक्रेन के साथ हुआ , सबने सुरक्छा का भरोसा दिया लेकिन जब युद्ध हुआ तो कोइ भी युद्ध मे शामिल नही हुआ। सिर्फ मदद के नाम पर लाठी वाला हथियार दिये।
अब सवाल ये आता है कि इस युद्ध का कसुरवार कौन है। सब पुतिन को ही जिम्मेदार मान रहे है लेकिन क्या वो सही मे जिम्मेदार है ? , क्योंकी पुतिन तो सिर्फ अपने देस को सुरक्छीत रखना चाहते है जो कि हर राष्ट्रपति का दायीत्व है। युक्रेन भी अपने आप को सक्तिसाली बनाकर सुरक्छित होना चाहता है इसलिये NATO मे शामिल होना चाहता है। तो फिर कसुरवार कौन है ?।
काश , पस्चिमी देस युक्रेन को उकसाते नही , अमेरिका जैसे देस बड़े बड़े वादे करके पीठ नही दिखाते तो शायेद ये युद्ध होता ही नही। लेकिन पस्चिमी देस अपनी गलती कभी नही मानेंगे। चाहे अफगानिस्तान हो, इराक हो, या शिरीया सबकी बरबादी मे कहीं न कहीं अमेरिका जैसे पस्चिमी देसो का हाथ रहा है। लेकिन कभि वो अपने आपको कसुरवार नही मानते , उलट अपने आपको शांती का मसीहा समझते है। इस संधर्भ मे भी जो कसुरवार है वो उलटा रूस के साथ प्रतिबंध – प्रतिबंध खेल रहे है। अब पुरी दुनिया को समझ जाना चाहिये कि चाहे हालात कैसे भी हो लेकिन अपने आंद्रुनी मामलो मे किसी दुसरे को शामिल नही करना चाहिये , नही तो अमेरिका जैसे देस कभि भी धोखा देकर उस देस को बरबाद कर सकते है।