पैसा है तो नाम है वरना सब बेकार है।
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जब भी विश्व पटल पर पर्यावरण कि बात होती है तो सबसे पहला नाम “ग्रेटा थनबर्ग ” का आता है , क्योंकी उन्होने 15 वर्स कि उम्र मे स्विडीस पर्लियामेंट के सामने पर्यावरण के लिये धरना प्रदरसन किया था। जिसके बाद वो एक पर्यावरण कार्यकरता के रुप मे विख्यात हुई , उसके बाद वो पर्यावरण जगरुकता के लिये काम करने लगी, कभी लिखि हुइ तखती लेकर, तो कभी सोसल साईट पर पोस्ट डालकर, कभी युनाईटेड नेसन मे “हाव डेर यू ?” वाला भासण देकर तो कभी विस्व के बड़े नेताओ मे कमियां निकालकर। वो बात अलग है की उसके लिये उनके पिछे PR कि एक बड़ी दल खड़ी होती है।
इन सारी योगदानो से वो एक बड़ी पर्यावरण कार्यकरता तो बन गयी लेकिन लोगो मे आज भी येही सवाल है की क्या वो एक सच्ची पर्यावरण कार्यकरता है!? , पुरी दुनिया मे जितना उनका कद बढा – चढा कर दिखाया जाता है क्या वो सच मे उसके लिये वो हकदार है? क्या सिर्फ कुछ पोस्ट करके, कुछ धरने प्रदरसन करके, दुसरो का लिखा भासण देकर छोटी सी उम्र मे एक बड़ा पर्यावरण कार्यकरता बना जा सकता है!? , ये इतना असान भी नही है, क्योंकि नाम कमाने मे लोगो की जिंदगीयां गुजर जाता है ।
जाहीर सी बात है की इन जैसो के पिछे एक बड़ा PR दल खड़ा रहता है जो इनको पैसो के दम पर बढ़ावा करता रहता है। तो कह सकते है कि नाम भी पैसो से ही होता है, काम काफी नही होता।
कुछ भी हो, हम इन जैसो को एक ताकतवर बड़ा इंसान तो मान सकते है लेकिन सच्चा पर्यावरण कार्यकरता नही मान सकते, क्योंकी उसके लिये पर्यावरण के बीच रहकर जमिनी स्तर पर काम करना पड़ता है।
हमने इस बार के पद्म्म श्री पुरस्कार समारोह मे एक नाम सुना श्रीमती तुलसी गोवड़ा , जिन्होने लगभग 30,000 से ज्यादा पौधा रोपन किया और पर्यावरण के लिये लगभग 6 दसको तक निस्वार्थ अपना योगदान दिया। लगभग अपना पुरा जीवन पर्यावरण और वन के लिये लगा दिया , जिनके लिये कभी कोइ PR दल खड़ा नही रहा , जिनका नाम विस्व मे सायद ही कोइ जानता हो।
और ये सच्चाई है कि विस्व मे तुलसी गोवड़ा जैसे कितने ही लोग है जो निस्वर्थ अपना योगदान देते है लेकिन नाम पैसे और PR के दम पर ग्रेटा थनबर्ग जैसे लोग कमा लेते है, और ये हमेसा से होता आया है कि पस्चिमी देश अपने देश को पहला स्थान देते है और पुर्वी देशो को बढावा नही देते।
ये मुद्दा ग्रेटा थनबर्ग और तुलसी गोवड़ा का नही है, ये मुद्दा वो दो समुह का है, एक जो PR और पैसो के दम पर अपना नाम बनाता है और दुसरा वो जो निस्वार्थ भाव से अपना कार्य करता है , एक वो जिसका सिर्फ नाम और पैसा उद्देस्य होता है, दुसरा वो जिसका उद्देस्य उसका कार्य-छेत्र होता है।
अब वक्त आ गया है की लोग चका चोंध वाली दुनिया से बाहर निकलकर असली नायको का पहचान करे जो निस्वार्थ भाव से अपना योगदान देते है, क्योंकी पर्यावरन को बचाना है तो PR से नही बच सकता बलकी सही मे अपना योगदान देकर ही बचाया जा सकता है।