क्या सावरकर जी बुजदील थे या वीर?
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देस मे एक नया बहस छिड़ा हुआ है कि सावरकर वीर थे या बुजदील ?, क्योंकी कुछ लोगो का मानना है कि जहां गांधी जी और नेहरू जी देस को अजाद कराने के लिये प्रयत्न कर रहे थे तो वहीं वीर सावरकर जो कि अंडमान मे काला पानी का सजा काट रहे थे, उस दौरान उन्होने अंग्रेजो को माफिनामा खत लिखा था।
इस बहस मे सबका अपना अपना राय है, कुछ लोगो का मानना है कि इतिहासकारो ने एक ही दल का संघर्स लिखा, दुसरो का इतिहास को दबा दिया गया। चलिये हम इतिहास के बहोत अंदर तक नही जाते है, जो प्रारंभीक ज्ञान है उसि से तुलना करते है कि क्या वीर सावरकर वीर थे या बुजदील? क्या अजादी दिलाने मे सिर्फ गांधी जी और कोंग्रेस का ही योगदान था या और लोगो ने भी अपना योगदान दिया था ।
वीर सवारकर जिन्होने सालो तक अंडमान मे काला पानी का सजा काटा, उस समय अंडमान को काला पानी इसलिये कहा जाता था क्योंकि वो बहोत ही खतरनाक हुआ करता था , वहां के जंगलो मे लोगो का जिवित रहना असान नही था, और उपर से जेल मे रहकर जिवित रहना नर्क से भी बदतर जिंदगी था। कैदीयों को मोटे मोटे जंजीरो से जकड़ा जाता था, बिना खाना पानी के कइ दिनो तक रखा जाता था, कैदीयों को कोल्हू के बैल की तरह तेल निकालने के लिये जोता जाता था। उन्हे कोड़े से मारा जाता था, बिमार पड़्ने पर इलाज नही किया जाता था। उस समय के लोग काला पानी का नाम सुनकर ही कांप जाते थे , कितने ही कैदी वहां तड़प तड़प कर मर गए। उस समय अंडमान से भागना मुसकील ही नहि बलकी नामुमकीन था, क्योंकि अंडमान चारो अरफ विशाल समुद्र से घिरा हुआ है।
कहा जाता है कि वीर सवारकर ने गांधी जी के कहने पर माफी नामा लिखा था , येहां मेरा मनना है कि अगर सवरकर जी बिना गांधी जी के कहे भी माफी नामा लिखते तब भी कोइ उनके वीरता पर उंगली नही उठा सकता। क्योंकी उन्होने किसी ऐसे जेल मे सजा नही काट रहे थे जहां का महोल अराम दायक हो और लोग जहां कीताब लिखने जाते हो, जहां कैदी अपने संग अपना पसिंदिदा बावरची तक ले जाते हो। सवरकर ने उस जेल मे सजा काटी है जहां कैदी जीने कि इछ्चा छोड़कर मर जाते थे। जो नरक से भी बदतर था। सवारकर भी आम इंसान थे, उनका सरीर भी जवाब दे सकता है, इसका मतलब ये नही है की उनके योगदान पर बुजदीली का ठप्पा लगा दिया जाए।
चलिये उन लोगो का बात मान ही लेते है, जो सवरकर को बुजदील मानती है, लेकिन अगर हम गांधी जी के बारे मे सोचे तो वो क्या थे!??, क्योंकी विस्व युध के दौरान उन्होने अंग्रेजो का साथ दिया था , और लोगो से अहवाहन किया था कि युध मे ब्रिटीस का साथ दे , गांधी जी की बात सुनकर हजारो हिंदुस्तानीयों ने ब्रिटीस के तरफ से जंग लड़ा था। उस वक्त ब्रिटीस ऐंपायर ही भारत को बंदी बनाकर रखा था, तो मान ले की गांधी जी गद्दार थे!?, भारत के दुसमनो का साथ दे रहे थे!?, अहिंसा वादी होते हुए भी लोगो को जंग लड़्ने के लिये अहावाहन किया था, तो क्या मान ले की उनका अहिंसा वादी विचारधारा सब ढकोसला था !?
क्यों नही मान सकते!, जब एक माफीनामा पर अगर हम किसी को बुजदील मान सकते है तो येहां अंग्रेजो का साथ देने का बात है!,ढकोसला क्यों ना कहे , जहां देस के मसले पर अहिंसावादी का प्रवचन सुना दिया जाता था तो वहीं अंग्रेजो के लिये विचारधारा को किनारा करके लोगो को जंग लड़्ने के लिये अहवाहन किया गया। भले ही वो जीवन मे कभी हिंसा नही किये हो, लेकिन उनके एक फैसले से लाखो लोग मारे गए (देस का विभाजन) , क्या वो रक्त उनके हाथो मे नही लगा होगा!?
नही मान सकते है ना, क्योंकी हमे बचपन से बताया जाता है की गांधी जी महातमा थे, उनसे कभी कोइ गलती हो ही नहि सकती थी। जब बड़े हुए तो लोगो ने डरा दिया, बोले गांधी जी रास्ट्रपीता है, उनका कभी अलोचना नही करना। लेकिन मै पुछना चाहता हुं कि कैसे भगत सिंह जी के कुरबानी को अतंकवादी का नाम दे दिया जाता है, लेकिन गांधी जी के किसी गलत फैसले के बारे मे बात तक नही कर सकते!? क्यों?
कुछ भी हो, जो सच्चायी हम महसूस करते है उसे झुठला तो नही सकते, कैसे मान ले कि सिर्फ नेहरू जी और गांधी जी ने ही देस को अजाद करवाया था , बाकी जो सहीद हुए उनका जीवन व्यर्थ था !? कैसे हम मानले कि जिस द्वीप के सेलुलर जेल के कोठरी मे आज भी कुछ घंटे गुजारना मुसकील लगे , उस समय के कैदी कैसे बुजदील हो सकते थे !।
मेरा मनना है कि उस समय सबका अपना अपना विचारधारा था , सब अपने विचारधारा के अनुरूप फैसले लेते थे , एक ही मंजील के लिये किये गये संघर्स मे एक को गलत और दुसरे को महान नही बताया जा सकता। जितना गांधी जी का योगदान था उतना ही भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानीयों का भी योगदान था। जितना गांधी जी महान थे उतना ही सावरकर भी महान थे।
देस के इतीहास मे सबसे बड़ा गलती वहां हुआ जब बड़े बड़े नेताओ ने अजादी का श्रेय के लिए राजनिती करने लगे और असली नायक के योगदानो को दबा दिया गया।
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